Wednesday, January 01, 2014

आप की विजय के दस कारण

निश्चय ही दिल्ली विधानसभा चुनाव परिणामों ने यह सुपरिभाषित कर दिया है कि कम से कम देश का शहरी विशेषकर महानगरीय लोकतंत्र एक नयी करवट ले रहा है।  वैसे यह भी एक कटु सत्य है कि जो सफलता आम आदमी पार्टी को दिल्ली विधानसभा में मिली है वैसी सफलता तो क्या इस सफलता का  ५०% सफलता उसकेलिए किसी भी अन्य महानगर चाहे वो मुम्बई कलकता हो या चेन्नई अथवा बैंगलोर में प्राप्त करना टेडी खीर सिद्ध होता।  हम अब ये अवश्य कह सकते है कि दिल्ली की इस सफलता के बाद देश का कम से कम शहरी मतदाता, विशेषकर युवा मतदाता जो सदैव परिवर्तन का स्वागत करने को तत्पर रहता है , आम आदमी पार्टी के बारे में कुछ हद तक गम्भीरता से सोचने लगा है।
ध्यान देने की बात ये भी है कि आम आदमी पार्टी की सफलता में दिल्ली के देश की राजधानी होने और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का केंद्र होने ने भी बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है।  आम आदमी पार्टी का जन्म भ्रष्ट्राचार विरोधी आंदोलन और सरकार के विरोध में आम आदमी के उदय के गर्भ से हुआ है और दिल्ली के देश की राजधानी होने ने आम आदमी पार्टी की लोकप्रियता बढ़ाने में मदद की है।  यदि हम ध्यान दें तो पाते है श्री कलमाड़ी जी जिन्हे CWG घोटाले के केंद्र के रूप में माना जाता रहा है उनका जितना विरोध दिल्ली में हुआ उसका १०% भी  उनके गृहनगर पुणे नहीं हुआ।  यहाँ पर ध्यान देने की बात ये भी है कि पुणे महाराष्ट्र राज्य का कोई छोटा मोटा नगर नहीं है, राज्य की सांस्कृतिक राजधानी होने के साथ साथ पुणे शिक्षा के केंद्र और कंप्यूटर हब के रूप में भी प्रसिद्ध है अर्थात पुणे में सुशिक्षित युवा नागरिकों की संख्या काफी अधिक है।
पिछले २-३ वर्षों से देश भर उजागर होते आर्थिक घोटालों, बढ़ती महंगाई और केंद्र में शासन कर रहे दल कांग्रेस की उदासीनिता से सम्पूर्ण देश में नागरिक असंतोष में चरणबद्ध रूप में वृद्धि हुई है परन्तु जितने आंदोलन और विरोध दिल्ली में हुए है उतने देश के किसी अन्य भाग में नहीं हुए हैं, यहाँ तक कि श्री अन्ना  हज़ारे के देशव्यापी भ्रष्ट्राचार विरोधी आंदोलन की कर्मभूमि दिल्ली ही थी।  दिल्ली में हुए निर्भया बलात्कार कांड जैसी घटनाओं ने इस असंतोष अग्नि में घी का काम किया।  श्री अरविन्द केजरीवाल और आम आदमी पार्टी के अधिकांश नेता दिल्ली में हुए इन आन्दोलनों से न केवल जुड़े हुए थे परन्तु प्रायः हर बार आंदोलन के अगरणीय की भूमिका में भी थे , इसीलिए स्वभाविक रूप में जब इन्होने आम आदमी पार्टी बनाकर विधानसभा चुनाव लड़ने का फैसला किया तो उन्हें विशाल जनसमर्थन मिलता चला गया।
०१] दिल्ली में पिछले १५ वर्षों से निरंतर चल रहे शीला दीक्षित जी के शासन के कारण शासन विरोधी भावना अपने चरम पर थी।  चुनाव पूर्व से बढ़ती महंगाई और बलात्कार की घटनाओं ने इस शासन विरोधी भावना को हवा दी।
०२] राष्ट्रीय राजधानी होने तथा केंद्र और दिल्ली दोनों स्थानों पर कांग्रेस की सरकार होने के कारण राष्ट्रिय स्तर पर हुए निर्णयों प्रभाव भी दिल्ली के नागरिकों का कांग्रेस के प्रति क्रोध का कारण बना।
०३] मुख्य विपक्षी दल बीजेपी चुनाव के लगभग एक माह पूर्व तक भी अपनी दिल्ली प्रदेश इकाई की आंतरिक कलह को सतह पर आने से रोकने में व्यस्त था।
०४] बीजेपी ने अपने प्रस्तावित मुख्यमंत्री के रूप में डा: हर्षवर्धन की घोषणा करने में देर कर दी जिसके कारण बीजेपी को कुछ स्थान काफी कम वोट अंतर से हारने पढ़े।
०५] बीजेपी यह भी नहीं समझ पायी कि वर्त्तमान में मतदाताओं का एक बड़ा प्रभावी वर्ग १८ से ३५ वर्ष के आयु वर्ग से आता है और यह वर्ग अधिक आयु वालों को अपने निर्वाचित प्रतिनिधि के रूप में नहीं देखना चाहता है।
०६] देश का सुशिक्षित युवा वर्ग खतरा उठाकर भी परिवर्तन चाहता है, सम्भवतः यह एक मुख्य कारण था जिसके कारण दिल्ली में आम आदमी पार्टी २८% से भी अधिक मतदाताओं की पसंद बन गयी।
०७] मध्यम वर्ग और गरीबों के लिए पानी जैसी आवश्यकता अथवा किसी छोटे मोटे काम के लिए सरकारी कार्यालय में समय गंवाने का अर्थ होता है अपने उस दिन के कमाई के समय में कटौती करना इसी कारण जब आम आदमी पार्टी ने मुफ्त पानी, बिजली बिल आधा कर देने अथवा मोहल्ला सभा जैसी लोकलुभावन घोषणाओं को घर घर पहुँचाना आरंभ किया तो नागरिक आकर्षित होते चले गए।
०८] यदि ध्यान दिया जाये तो बीजेपी द्वारा श्री मोदी जी की प्रधानमंत्री पद के लिए घोषणा के बाद से कांग्रेस बचावात्मक रूप में आ गयी और अनुभव कर रही है की २०१४ के लोकसभा चुनावों में उसकी पराजय लगभग तय हो चुकी है इसीलिए कांग्रेस हरसंभव प्रयत्न कर रही है कि २०१४ के चुनाव के बाद केंद्र में एक कमजोर सरकार बने।  अपने इस अभियान में कांग्रेस ने अनुभव किया कि अनुभवहीन और अतिउत्साही आम आदमी पार्टी एक ऐसा राजनैतिक दल है जिसके कंधे पर बन्दूक रखकर, बीजेपी के केंद्र में शक्तिशाली सरकार बनाने के इरादे को निशाना बनाया जा सकता है।
०९] दिल्ली में पिछले तीन वर्षों से निरंतर चल रहे जन आन्दोलनों के कारण श्री अरविन्द केजरीवाल और आम आदमी पार्टी के अन्य नेताओं की लोकप्रियता के नए शिखर छू रही थी।
१०] अपनी विशिष्ट सरकारी विरोधी भाषा शैली के कारण आम आदमी पार्टी के नेता नागरिक असंतोष को उभरने और अपने पक्ष में मतदान करवाने में बीजेपी की अपेक्षा अधिक सफल हुए। 

1 comment:

L C Bilandani said...

You seem to appreciate AAP. I donot subscribe to your view.
They are another party of SECULARISTS who are out to please the minority community at any cost.Kejriwal personally met many Maulvis whose antedecent are in doubt.
The party is having majority of people who subscribe to Communism and people like Prashant Bhushan are the staunch supporters of communist theory. This is to take country backwards.
The reduction in electricity bills is by giving subsidy. From where the money has to come from. Again we are to be taxed for all this subsidy. It is cheap popularity.
Yes one thing I apprciate about them is they seem to be honest and that is the only good point in them. They talk too much especially people like Kumar Biswas and people like him have started flying in the air. Hope this tendency will be put under control and they really work for the people.