Tuesday, August 16, 2011

अन्ना की आंधी

ये संभवतः किसी भी लोकत्रांतिक देश के इतिहास का पहला अवसर होगा जब लोकत्रांतिक राज्य व्यवस्था के आधी शताब्धी पुरे करने के बाद ठीक स्वतंत्रता की वर्षगांठ के दुसरे दिन से आज़ादी की दूसरी लड़ाई के नारे के साथ आरंभ हो रहे किसी जन आन्दोलन का सामना करना पड़ रहा हो | प्रश्न ये नहीं है कि ये आन्दोलन कियूं हो रहा है लोकतंत्र में इस तरह के विरोध स्वरों के लिए तो सदैव स्थान रहता है और लोकतंत्र के स्वस्थ के लिए ये विरोध स्वर आवश्यक भी हैं प्रश्न केवल इतना सा है कि अन्ना के आन्दोलन को इनता व्यापक जन समर्थन कियूं और कैसे मिल रहा है ? इस छोटे से प्रश्न ने सरकार की नींद तो उड़ा दी ही है साथ ही अन्य राजनेतिक दलों के माथे पर चिंता की लकीरें भी खिंच दी है | किया वास्तव में अन्ना की मांगे इस विशाल जन समर्थन को सार्थक बनाती है ? किया ये संभव है कि केवल और केवल एक कानून बना देने से देश को रिश्वतखोरी जैसी बड़ी समस्या से बचाया जा सकता है ? यदि देखा जाये तो वर्तमान में हमारे देश कि अवस्था है उसमे केवल कानून बना देना किसी भी समस्या का हल नहीं है , हमारी कोई भी समस्या के हल के लिए वयवस्था परिवर्तन अति आवश्यक समय के साथ चलने कि दिशा में उठाया गया कदम होगा | मैं अपने मूल प्रश्न अन्ना को मिल रहे व्यापक जन समर्थन कि तरफ लोटता हूँ
१. इस देश में मेरे जैसे न जाने कितने ही हज़ार लोग अन्ना के जन लोकपाल के प्रस्ताव " लोकपाल को शिकायतकर्ता , जांचकर्ता और न्यायकर्ता बनाने के " का समर्थन नहीं करते हैं , परन्तु फिर भी ये बड़ा बुद्धिवादी वर्ग अन्ना के साथ है कियूं कि हम जानते हैं कि अन्ना जिस परिवर्तन की बात कर रहें हैं वो न केवल देश हित में परन्तु साथ साथ देश के vikas के लिए आवश्यक भी है |
२. आम आदमी राजनेताओं की महंगाई और अन्य समस्याओं के प्रति उदासीनता से तंग आ चुका है और देश में एक प्रकार से राजनेतिक विश्व्सिनियता का संकट गहराता जा रहा है ऐसे समय में अन्ना के प्रस्ताव न केवल आम आदमी के मन में आशा का प्रकाश फैलाते हैं पर साथ ही एक प्रकार का विश्वास भी पैदा करते हैं |
३. युवा वर्ग बेरोज़गारी और शिक्षा के अवसरों के कारण अपने भविष्य के लिए चिंतित है इस विराट वर्ग में भी अन्ना का व्यवस्था परिवर्तन के लिए किये गए आन्दोलनों का इतहास प्ररेणा स्रोत का कम कर रहा है |
४. देश का हर नागरिक जानता है कि अन्ना के प्रस्तावों के कारण रिश्वतखोरी दूर नहीं होगी परन्तु कम से कम छोटी छोटी रिश्वतों से नागरिकों का पीछा छुट जायेगा |
५. अन्ना के प्रस्ताव सरकारी कर्मचारियों के साथ साथ उच्च अधिकारीयों और मंत्रियों के मन में एक प्रकार का भय पैदा करेगा और यह भय देश से रिश्वतखोरी ख़त्म करने में सहायक होगा |

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Wednesday, August 10, 2011

सतगुरु स्वामी शांतिप्रकाश जी महाराज


सिंध की संतों की जननी धरा हो या भारतवर्ष की पावन पवित्र धरती , सिन्धी समाज पर परमात्मा की सदैव असीम कृपा रही है कियुन्की सिन्धी समाज में , आम आदमी के जीवन को भक्ति और श्रद्धा के रस से सरोबर करनेवाले संतों मह्त्माओं के रूप में पावन आत्माएं जन्म लेती रही है | आधुनिक युग के सिन्धी संतों में सतगुरु स्वामी शांतिप्रकाश जी को अग्रणीय और विशेष स्थान प्राप्त है | स्वामी जी का जन्म ई .स . १९०७ में सिंध प्रान्त के खंडू नामक स्थान पर रक्षा बंधन के दिन हुआ था | किसे पता था कि खैराज्मल नाम वाला यह बालक भविष्य में न केवल सिन्धी समाज की पापों से रक्षा करनेवाले परन्तु सम्पूर्ण मानवता के लिए शांति के प्रकाश रुपी संत के रूप में प्रसिद्ध होगा ||
छोटी अवस्था में ही चेचक के प्रभाव के कारण स्वामी जी की आँखों की रोशनी जाती रही और निराश होकर पिता श्री आसुदोमल बालक को लेकर शाहपुर थलो के मशहूर संत हरचुराम जी के पास पहुँच गए तथा बालक को संतजी के सेवा के लिए आश्रम में छोड़ आये | तीन वर्षों के बाद जब पिता ने बालक की आँखों की ज्योति के बारे में पूछा तो संतजी ने उत्तर दिया " इस बालक के नेत्र ज्योतिविहीन होने के कारण आपको चिंता करने की ज़रूरत नहीं है , ये बालक आगे चलकर न सिर्फ लाखों लोगों का मार्गदर्शक बनेगा पर सिंधियों के सर्वाधिक प्रसिद्ध संतों में शामिल होगा |"
एक दिन जब बालक की मुलाकात सतगुरु स्वामी तेऊराम जी से हुई तो उसने गुरु मंत्र देने के लिए प्राथर्ना की | स्वामी जी बालक को अपने साथ टंडो आदम अमरापुर स्थान ले गए , जहाँ पर बालक की साधू संतों की सेवा करने और सीखने की प्रवर्ति से खुश होकर स्वामी जी ने बालक को नया नाम शांतिप्रकाश दिया और उसकी धार्मिक शिक्षा पर विशेष ध्यान देने लगे | तीन वर्षों तक हरिद्वार में रहकर हिन्दू धरम ग्रंथों , शाश्त्रों और उप्निषिदों को अध्यन करने के बाद शांतिप्रकाश जी को धन सिरी गुरु ग्रन्थ साहिब जी का ज्ञान प्राप्त करने के लिए अमृतसर भेजा गया | ज्ञानी हमीरसिंह ये देख कर आश्चर्य चकित रह गए कि इस चक्क्शुविहीन युवक को सिरी गुरु ग्रन्थ साहिब जी का जो ही शब्द एकबार सुनाया जाता है वह याद रहता है |
शिक्षा पूरी करने के बाद स्वामीजी टंडो आदम के आश्रम में लोट आये और गुरु जी महराज के साथ सिंध प्रान्त के अलग अलग शहरों में धार्मिक प्रवचन के लिए भ्रमण करने लगे | देश के विभाजन के बाद स्वामी सर्वानन्द जी ने जयपुर में अमरापुर स्थान की स्थापना की परन्तु स्वामी शांतिप्रकाश जी ने अपने कार्यक्षेत्र के रूप में उल्हासनगर का चुनाव किया |
स्वामी जी की नज़रों में बिना मानवता की सेवा के आध्यात्मिक विकास अर्थहीन था इसीलिए स्वामी जी ने उल्हासनगर में प्रेमप्रकाश आश्रम की स्थापना की और उनके अथक परिश्रम के कारण जल्द ही ये आश्रम केवल धार्मिक स्थान न रहकर सिन्धी समाज के सामाजिक विकास और समाज सेवा का केंद्र बन गया | स्वामी जी ने उल्हासनगर में जनता जनार्धन परिषद् , सुंदर सेवक सभा , स्वामी सर्वानन्द हॉस्पिटल , नारी शाला, श्री राधेश्याम गौ शाला जैसी अनेक सामाजिक उपयोगी संस्थाओं का निर्माण किया |
स्वामी जी का ये स्वभाव था कि वे ये नहीं देखते थे कि उनसे याचना करनेवाला प्रेम्प्रकाशी है या नहीं वे तो बस याचक के दुःख देखते थे और उन दुखों का निवारण करने का प्रयत्न करते थे | वार्षिक नेत्र चिकित्सा शिविर उनके सामाजिक कार्यक्रमोंमें विशेष स्थान रखता था|
एक बार एक साधू ने आश्रम के द्वार पर आकर खाना माँगा परन्तु आश्रम के सेवक ने कह दिया कि थोड़ी देर के बाद आना कियूं कि खाना तो तयार है परन्तु दिया भगवन को भोग लगाने के बाद , साधू निराश होकर चला गया जब स्वामी जी को इस बात का ज्ञान हुआ तो उन्होंने उस सेवक का कहा "मुर्ख जिस भगवन को तुम भोग लगाने कि तयारी कर रहे हो उसे तो तुमने भूखा ही लोटा दिया जाओ और जाकर उस साधू को ढूंढ़ कर माफ़ी मांगकर उसे खाना खिलाओ यही वास्तविक रूप में भगवन को भोग लगाना है |" उसी दिन से उल्हासनगर आश्रम में साधू संतों के भोजन की विशेष विवस्था आरंभ हो गयी |
१९ अगस्त १९९२ में विमान से सिंगापूर जाते समय प्रातःकाल ४ बजे अमृत वेला में स्वामी जी इस नश्वर संसार को त्यागकर परमपिता परमात्मा में विलीन हो गए परन्तु उनके सामाजिक कार्यों और लाखों करोड़ों लोगो के आधियातमिक विकास के प्रयत्नों के कारण वे सदा सभी के दिलों में जीवत है और रहेंगे |